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Cheque bounce complaints now cash लोन पर ₹20,000 से अधिक की राशि होने पर भी दर्ज की जा सकती हैं: सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाई कोर्ट का फैसला रद्द किया

Cheque bounce complaints now cash
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Cheque bounce complaints now cash: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जो कैश लोन और चेक बाउंस मामलों में कानून की व्याख्या को स्पष्ट करता है। कोर्ट ने यह तय किया कि सेक्शन 138 ऑफ़ नेगोशियेबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (NI Act) के तहत कैश लोन के लिए जारी किए गए बाउंस हुए चेक के खिलाफ शिकायत दर्ज की जा सकती है, भले ही लोन की राशि ₹20,000 से अधिक हो। इस फैसले ने केरल हाई कोर्ट के P.C. Hari v. Shine Varghese (2025) मामले में दिए गए विपरीत निर्णय को रद्द कर दिया।

केरल हाई कोर्ट का विवादास्पद निर्णय

केरल हाई कोर्ट ने अपने पिछले निर्णय में यह कहा था कि यदि कोई कैश लेनदेन ₹20,000 से अधिक है, तो वह सेक्शन 269SS ऑफ़ इनकम टैक्स एक्ट, 1961 का उल्लंघन माना जाएगा। हाई कोर्ट का तर्क था कि ऐसे लेनदेन “कानूनी रूप से लागू योग्य ऋण” नहीं बनाते हैं, और इसलिए NI Act की सेक्शन 138 के तहत चेक बाउंस शिकायत दर्ज नहीं की जा सकती।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस व्याख्या को खारिज कर दिया और स्पष्ट किया कि इनकम टैक्स एक्ट की सेक्शन 269SS का उल्लंघन केवल पेनल्टी का विषय है, और इससे लोन अवैध या लागू नहीं होने वाला नहीं बनता। इसका मतलब यह है कि कैश लोन वैध ऋण है, और उसके लिए जारी चेक के बाउंस होने पर शिकायत करना कानूनी रूप से सही और मान्य है।

सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि कोई चेक का निष्पादन स्वीकार कर लेता है, तो NI Act की सेक्शन 118 और 139 के तहत स्टैच्यूटरी प्रेजंप्शंस स्वचालित रूप से शिकायतकर्ता के पक्ष में लागू हो जाते हैं। अदालत ने पाया कि अभियुक्त ने यह साबित करने में विफल रहे कि शिकायतकर्ता के पास लोन देने की वित्तीय क्षमता नहीं थी।

अदालत ने इस दलील को कि खाली चेक केवल बैंक लोन लेने में मदद के लिए जारी किया गया था, अविश्वसनीय और निरर्थक बताया। यह निर्णय स्पष्ट करता है कि कैश लोन के लिए जारी चेक वैध ऋण का प्रमाण है, भले ही उस लोन की राशि इनकम टैक्स कानून के नकद लेनदेन सीमा से अधिक हो

चेक बाउंस मामलों का लंबित भार

सुप्रीम कोर्ट ने भारत के चेक बाउंस मामलों में लंबित मामलों की भारी संख्या पर भी चिंता व्यक्त की। कुछ राज्यों में ट्रायल कोर्ट में लंबित मामलों का लगभग 50% भाग सेक्शन 138 के तहत है

इस समस्या को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस मामलों के त्वरित निपटान के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए:

  1. समन (Summons) की सेवा डिजिटल माध्यम से: ईमेल, व्हाट्सएप और दास्ती के माध्यम से समन की अनुमति।
  2. ऑनलाइन भुगतान प्लेटफ़ॉर्म: QR कोड या UPI लिंक के माध्यम से आरोपी को चेक राशि जल्दी चुकाने का विकल्प।
  3. संरचित केस संक्षेप: सभी शिकायतों में आवश्यक रूप से केस का विस्तृत सारांश प्रस्तुत करना।
  4. समझौता शुल्क (Compounding Cost) दिशा-निर्देश: जल्दी निपटान को प्रोत्साहित करने के लिए संशोधित दिशा-निर्देश।

इन कदमों से चेक बाउंस मामलों का निपटान तेजी से हो सकेगा और ट्रायल कोर्ट पर बोझ कम होगा।

कैश लोन के लिए चेक बाउंस शिकायतें

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कैश लोन का पुनर्भुगतान, चाहे वह इनकम टैक्स की नकद सीमा का उल्लंघन करता हो, चेक बाउंस कार्रवाई के माध्यम से लागू किया जा सकता है। यह निर्णय न केवल ट्रायल कोर्ट के पहले फैसले को बहाल करता है, बल्कि यह भी निर्देश देता है कि अभियुक्त को ₹7.5 लाख की राशि 15 किस्तों में चुकानी होगी

इस फैसले का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह कैश लोन देने और लेने वाले दोनों पक्षों के अधिकारों और दायित्वों को स्पष्ट करता है। अब कोई भी यह दलील नहीं दे सकता कि ₹20,000 से अधिक के नकद लेनदेन के कारण ऋण वैध नहीं है।

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कानूनी दृष्टिकोण और प्रभाव

  1. सेक्शन 269SS का उल्लंघन: केवल पेनल्टी का विषय है (सेक्शन 271D), और इससे ऋण अवैध नहीं बनता।
  2. NI Act की सेक्शन 138: अब स्पष्ट रूप से लागू होगी, भले ही लोन कैश हो और ₹20,000 से अधिक हो।
  3. स्टैच्यूटरी प्रेजंप्शंस: चेक निष्पादन स्वीकार किए जाने पर स्वचालित रूप से शिकायतकर्ता के पक्ष में लागू होंगे।
  4. ऑनलाइन और डिजिटल सुविधा: जल्द भुगतान और समझौते की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए डिजिटल माध्यम को मान्यता।

इस फैसले से MSMEs और व्यक्तिगत ऋणदाताओं को न्यायिक सुरक्षा मिलती है। साथ ही, यह कैश लोन की लेनदेन प्रक्रियाओं को कानूनी रूप से मजबूत बनाता है।

व्यावहारिक महत्व

  • ऋणदाता के लिए: अब वह सुनिश्चित हो सकता है कि किसी भी कैश लोन पर जारी चेक का बाउंस होने पर NI Act के तहत कार्रवाई की जा सकती है, भले ही राशि ₹20,000 से अधिक हो।
  • ऋणग्राही के लिए: वह पेनल्टी का भुगतान कर सकता है लेकिन ऋण को अवैध नहीं ठहरा सकता।
  • न्यायपालिका के लिए: डिजिटल साधनों के माध्यम से केस निपटान में तेजी आएगी, जिससे लंबित मामलों का बोझ कम होगा।

सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का महत्व

सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस मामलों के निपटान में आधुनिक तकनीक और डिजिटल प्रक्रियाओं को शामिल करने की दिशा में कदम उठाए हैं। इसके मुख्य लाभ:

  1. समन की सुविधा: ईमेल, व्हाट्सएप और दास्ती से त्वरित समन।
  2. ऑनलाइन भुगतान प्लेटफ़ॉर्म: QR कोड और UPI लिंक से भुगतान।
  3. संरचित केस संक्षेप: प्रत्येक शिकायत में पूरा केस विवरण होना अनिवार्य।
  4. समझौता शुल्क में सुधार: जल्दी समझौता करने वाले पक्ष को आर्थिक प्रोत्साहन।

इन उपायों से चेक बाउंस मामलों के निपटान में पारदर्शिता, गति और दक्षता बढ़ेगी।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय कैश लोन और चेक बाउंस मामलों में एक महत्वपूर्ण मिसाल है। मुख्य बिंदु:

  1. कैश लोन के लिए बाउंस हुए चेक की शिकायत वैध है, चाहे राशि ₹20,000 से अधिक हो।
  2. सेक्शन 269SS का उल्लंघन ऋण को अवैध नहीं बनाता, केवल पेनल्टी लागू होती है।
  3. डिजिटल और ऑनलाइन प्रक्रियाएं केस निपटान को तेज़ और आसान बनाएंगी।
  4. यह फैसला ऋणदाता और ऋणग्राही दोनों के लिए कानूनी सुरक्षा सुनिश्चित करता है।

इस फैसले से न केवल कानूनी अस्पष्टता दूर होगी, बल्कि NI Act के तहत चेक बाउंस मामलों का त्वरित और न्यायसंगत निपटान भी संभव होगा।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. क्या ₹20,000 से अधिक के कैश लोन पर चेक बाउंस शिकायत दर्ज की जा सकती है?
हाँ, सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय के अनुसार, सेक्शन 138 NI Act के तहत चेक बाउंस शिकायत वैध है, चाहे कैश लोन की राशि ₹20,000 से अधिक हो।

2. सेक्शन 269SS का उल्लंघन क्या है और इसका क्या प्रभाव है?
सेक्शन 269SS का उल्लंघन केवल पेनल्टी का विषय (सेक्शन 271D) है। इसका मतलब यह नहीं है कि ऋण अवैध है या लागू नहीं किया जा सकता।

3. चेक बाउंस मामले में स्टैच्यूटरी प्रेजंप्शंस क्या हैं?
यदि चेक का निष्पादन स्वीकार किया गया है, तो NI Act की सेक्शन 118 और 139 के तहत शिकायतकर्ता के पक्ष में स्वतः प्रेजंप्शंस लागू होते हैं, जब तक कि आरोपी इन्हें सफलतापूर्वक खारिज नहीं करता।

4. सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए क्या दिशानिर्देश दिए हैं?

  • समन ईमेल, व्हाट्सएप और दास्ती के माध्यम से।
  • QR कोड और UPI लिंक से ऑनलाइन भुगतान।
  • सभी शिकायतों में संरचित केस संक्षेप।
  • जल्दी समझौता करने के लिए संशोधित समझौता शुल्क दिशा-निर्देश।

5. इस निर्णय का MSMEs और ऋणदाताओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
इस निर्णय से MSMEs और व्यक्तिगत ऋणदाता कानूनी सुरक्षा और स्पष्ट दिशा-निर्देश प्राप्त करेंगे। ऋणदाता को भरोसा होगा कि उनके जारी चेक वैध हैं, और ऋणग्राही केवल पेनल्टी देगा, ऋण अवैध नहीं होगा।

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