Bank manager and 3 others arrested: लखनऊ: वह बैंक का आदर्श अधिकारी माना जाता था — युवा, योग्य और महत्वाकांक्षी। गौरव सिंह, 40, बी.टेक और एमबीए डिग्रीधारी, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की जंकिपुरम शाखा के प्रबंधक के रूप में कार्यरत थे। लेकिन इस सम्मानजनक पद के पीछे, पुलिस का दावा है कि सिंह अपने ही छायादार कारोबार में लिप्त थे। वह अपने आधिकारिक लॉगिन आईडी, फर्जी दस्तावेज़ और साथियों की मदद से मुद्रा और ऑटो लोन के जरिए करोड़ों रुपये का गबन कर रहे थे।
उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (STF) ने रविवार शाम इस घोटाले का पर्दाफाश किया और सिंह के साथ नवेद हसन (42), अखिलेश तिवारी (37) और इंद्रजीत सिंह (30) को हज़रतगंज स्थित एक आलीशान अपार्टमेंट से गिरफ्तार किया।
लोन घोटाले की पूरी कहानी
एसपी एसटीएफ, विशाल विक्रम सिंह के अनुसार, गौरव सिंह ने अपनी पदस्थता का लाभ उठाकर आंतरिक जांच को दरकिनार किया। लोन चाहने वालों को त्वरित क्रेडिट का वादा कर लुभाया गया।
- पीड़ितों के आधार और पैन कार्ड जुटाए गए।
- दस्तावेज़ों पर उनके हस्ताक्षर प्राप्त किए गए।
- लोगों को विश्वास दिलाया गया कि उनका लोन प्रक्रिया में है, लेकिन वास्तविकता यह थी कि मंजूर की गई राशि उनके खाते में कभी नहीं पहुंची।
- पैसे फर्जी कंपनियों के खातों में स्थानांतरित किए गए, जो फर्जी दस्तावेज़ों पर आधारित थीं।
भूमिकाएँ:
- इंद्रजीत सिंह: फील्ड ऑपरेटर, लोन की आवश्यकता वाले लोगों की खोज।
- अखिलेश तिवारी और नवेद हसन: फर्जी दस्तावेज़ बनाने में विशेषज्ञ।
- गौरव सिंह: बैंक सिस्टम का दुरुपयोग, असिस्टेंट मैनेजर की लॉगिन आईडी का इस्तेमाल।
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लोन घोटाले का खुलासा
घोटाला तब सामने आया जब राज बहादुर गुरूंग, एक स्थानीय व्यवसायी, को EMI नोटिस प्राप्त हुए। जांच में पता चला कि उनके नाम पर ₹24.8 लाख के लोन मंजूर किए गए थे:
- मुद्रा लोन: ₹9.8 लाख
- ऑटो लोन: ₹15 लाख
दोनों लोन सिंह की शाखा से मंजूर किए गए थे।

गिरफ्तारियों के बाद की बरामदगी
पुलिस ने निम्नलिखित सामान जब्त किया:
- 5 मोबाइल फोन
- 1 डेस्कटॉप (दस्तावेज़ फर्जी करने में इस्तेमाल)
- फर्जी आधार कार्ड
- 268 लोन संबंधित फाइलें
- 2 चेकबुक
- 4 लग्ज़री कारें (BMW X1 और Suzuki Baleno सहित)
- 1 प्रिंटर और नकद
जांचकर्ताओं का मानना है कि ये संपत्तियाँ कम से कम 20 फर्जी लोन के proceeds से खरीदी गई थीं।
गिरफ्तारी के दौरान खुलासे
गौरव सिंह ने पूछताछ में स्वीकार किया कि उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ एक ‘well-oiled gang’ बनाई थी।
“हमने लोगों को यह विश्वास दिलाया कि उनका लोन जल्द ही क्रेडिट हो जाएगा। वास्तविकता यह थी कि फंड हमारे द्वारा नियंत्रित फर्जी फर्मों के खातों में जाता था। बाद में हम पैसे नकद निकालकर बांट लेते थे।”
नवेद हसन ने स्वीकार किया कि वह पहले भी 2021 में एक फर्जी ट्रांसपोर्ट कंपनी घोटाले में जेल जा चुका था।
आगे की कार्रवाई
एसटीएफ अन्य लोन की जांच कर रही है जो सिंह के कार्यकाल के दौरान मंजूर हुए। अधिकारियों को शक है कि यह गिरोह कई बैंकों में करोड़ों रुपये की धोखाधड़ी कर चुका है और अन्य प्रबंधक भी इसमें शामिल हो सकते हैं।
इलेक्ट्रॉनिक उपकरण फॉरेंसिक जांच के लिए भेजे गए हैं और अधिक गिरफ्तारी की संभावना है।